कछुआ गुरु / KACHUA GURU
एक बूढ़े आदमी थे जो गंगा नदी के किनारे पर रहते थे I उन्होंने एक झोपड़ी बना ली थी I झोपड़ी में एक लकड़ी का टुकड़ा था पानी से भरा हुआ एक जल का घड़ा था I और उन्होंने एक कछुआ भी पाल रखा था I
पास की बस्ती में दोपहर में रोटी मांगने जाते तो थोड़े चने भी मांग लेते I बे कछुए को भीगे चने खिलाते थे I
1 दिन किसी ने पूछा- आपने यह क्या गंदा जीत पाल रखा है, इसे गंगा जी में फेंक दीजिए I
बूढ़े बाबा बड़े नाराज हुए, और कहने लगे तुम मेरे गुरु बाबा का अपमान करते हो I देखते नहीं की तनिक सी आहट पाकर या किसी के साधारण इस पर से वे अपने सबंग भीतर खींचकर कैसे गुड़ी मुड़ी हो जाते हैं I
चाहे जितना हिलाओ रुलाओ 1 पैर तक नहीं मिलेंगे I
उस व्यक्ति ने पूछा इस से क्या हो जाएगा I बाबा भोले हो क्यों नहीं गया मनुष्य को भी इसी प्रकार सावधान रहना चाहिए, लोभ लालच और भीड़ भाड़ में नेत्र मोड कर राम-राम करना चाहिए I
सच्ची बात तो यह है कि वे किसी को देखते ही भागकर झोपड़ी में खो जाते थे और जोर जोर से राम-राम बोलने लगते I कोई कितना भी चिल्ला कर पुकारे लेकिन वह जवाब नहीं देते थे पर आज पता नहीं कैसे और क्यों बोल रहे थे I
उस आदमी ने कहा- चाहे जो हो यह बड़ा घिनौना दिखता है जानवर
बूढ़े बाबा ने कहा- इससे क्या हो गया अपने परम लाभ के लिए तो नेट से भी प्रेम किया जाता है I
बे कछुए को हथेली पर उठाकर करने लगे और गाने लगे I
“अति नीचाह सन प्रीत करी जान निज परम हित”
1 टिप्पणियाँ
Nice story
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