क्यों ऐसा क्यों / Kyo Aisa Kyo/ HINDI KAHANI


क्यों ऐसा क्यों
Kyo Aisa Kyo

 एक बार का जिक्र है एक साहूकार था I जो अपने कारोबार में अन्य लोगों से बहुत    भिन्न  था I उसे एक पूरे  गुरु की खोज की जो उसे सत्य का ज्ञान दे सके I उन दिनों गुरु नानक देव का नाम हिंदुस्तान के कोने कोने में फैल चुका था I उस साहूकार को उनसे मिलने की बहुत चाह  थी, क्योंकि उसे विश्वास था की    वहीं उसे रूहानी भेद पाने का तरीका बता सकते हैं I
                        गुरु नानक देव जी जगह जगह की यात्रा करते हुए संयोग से उस साहूकार के गांव मैं आ पहुंचे I उन्होंने कुछ दिन तक उसी गांव में रहने का फैसला किया I सैकड़ों लोग ने उनके सत्संग से लाभ उठाया और नाम दान भी प्राप्त किया I इनमें वह साहूकार भी शामिल था I
            साहूकार के घर के पास उसका एक बहुत पुराना और गहरा मित्र रामदास रहता था I वह भी साहूकारी करता था I गुरु नानक देव के बारे में उसने बहुत सी बातें सुन रखी थी, इसलिए वह भी उनका सत्संग सुनने का इच्छुक था I एक दिन दोनों मित्र एक साथ उस महान संत के चरणों में बैठकर सत्संग सुनने के लिए निकल पड़े, लेकिन रास्ते में रामदास की नजर एक वैश्या पर पड़ी और वह उसके रूप और हाव-भाव पर मोहित होकर उसकी ओर खिंचा चला गया I उसके मित्र ने उसे रोकने की कोशिश करते हुए कहा भले आदमी मुक्ति के आनंद को छोड़कर नरक की आग में मत कूदो I लेकिन उसका तर्क कुछ काम नहीं आया I आखिर में साहूकार अकेला ही सत्संग में चला गया I रोज ऐसा ही होता रहा


          दोनों दोस्त घर से इकट्ठे निकलते रामदास  वेश्या के पास रुक जाता, और साहूकार सत्संग में पहुंच जाता I रामदास गिरावट की ओर बढ़ता गया और उसके दोस्त की गुरु साहिब के प्रति भक्ति और श्रद्धा दिन प्रतिदिन बढ़ती गई I साहूकार अपने मित्र को रोज सही रास्ते पर लाने का यत्न करता पर रामदास ने दुराचार का रास्ता नहीं त्यागा, ऐसे ही एक महीना बीत गया I
                    1 दिन साहूकार ने रामदास से कहा आज गुरु साहिब संगत को प्रसाद देने वाले हैं एक बार तो अपने   कुकर्मों छोड़ कर मेरे साथ चलो कोई, कितना ही  बड़ा पापी और गुनहगार क्यों ना हो उसके मन का रुख बदलने के लिए 1 सत्संग ही काफी होता है I दोस्ती के नाम पर मैं तुम से विनती करता हूं, कि आओ आज मेरे साथ चलो सत्संग में जाकर ही तुम समझ सकोगे कि संतों की संगति से क्या लाभ होता है और उसमें कितना आनंद प्राप्त होता है I
                रामदास ने बात सुनी अनसुनी कर दी फिर अपने मित्र से बोला तुम रोज सत्संग में जाते हो और पुण्य कमाते हो मैं रोज पाप करता हूं देखें आज हमें अपने अपने कर्मों का क्या फल मिलता है I एक दोपहर को तुम मेरे घर आ जाना दोनों बैठ कर अपना अपना हाल बयान करेंगे I
                  यह कहकर रामदास जल्दी से वैश्या के घर  पहुंचा, पर वह घर पर नहीं थी निराश होकर वह वापस अपने घर आया और अपने मित्र का इंतजार करने लगा I उस दिन सत्संग में और उसके बाद हुई बातचीत में साहूकार इतना खो गया था कि उसे समय बीतने का पता  ही नहीं चला इसलिए उसे घर पहुंचने में उस दिन बहुत देर हो गई I
                 मित्र का इंतजार करते करते समय बिताने के लिए रामदास ने अपनी छड़ी से जमीन को कुरेदना शुरू कर दिया जमीन नरम थी इसलिए मिट्टी निकलती गई थोड़ी देर के बाद छड़ी एक मिट्टी के घड़े से टकराई  जिसके मुंह पर ढक्कन लगा हुआ था I रामदास में ढक्कन हटाया तो देखा कि ऊपर ही एक सोने की मोहर पड़ी है, यह सोच कर कि पूरा घड़ा मोहरों से भरा होगा उसने जल्दी से उसे जमीन में से निकाल लिया पर जब उसने देखा कि उसमें केवल एक मोर है और बाकी सब कोयले के टुकड़े हैं तो वह बहुत निराश हुआ खुद को दिलासा देते हुए उसने कहा कि चलो बिना मेहनत किए एक मोहर तो मिली I
           उसी समय उसका मित्र लंगड़ा ता हुआ चला आया वह दर्द से बहुत परेशान दिखाई दे रहा था I
                  रामदास ने पूछा अरे भाई तुम्हें क्या हुआ तो इस बात पर साहूकार बोला क्या बताऊं अचानक एक लंबा  शूल मेरे पैर में चुभ गया और मैं जख्मी हो गया बदकिस्मती से शूल अंदर ही टूट गया जिससे दर्द और भी बढ़ गया I
               इस पर रामदास हंसा और बोला मेरे भाई अब तुम खुद ही देख लो कि सत्संग में जाकर तुम्हें क्या मिला और पाप करने से मुझे क्या हासिल हुआ तुम   शूल की पीड़ा से चिल्ला रहे हो और मुझे सोने की मोहर मुफ्त में मिल गई है I क्या तुम अभी सत्संग का गुणगान करते रहोगे I
                 यह शब्द चाहे एक ऐसे व्यक्ति ने कहे थे जैसे संतों के सत्संग के आनंद का जरा भी अनुभव नहीं था I फिर भी साहूकार के मन में शंका पैदा हो गई, वह सोचने लगा ऐसा क्यों है की दुनिया में पाप फलता फूलता है और नेकी करने वाले हमेशा दुख और मुसीबतें ही खेलते हैं I रामदास हमेशा पाप करता था और मैं सच्चे दिल से तुम्हारी भक्ति करने की कोशिश करता था फिर भी I उसे मोहर मिली और मुझे मिला  शूल का असहनीय दर्द सतगुरु की संगत में जाने का कोई लाभ है भी या नहीं क्या मुझे गुरु के दिखाए रूहानी मार्ग पर चलते रहना चाहिए कहीं यह सब एक भ्रम एक धोखा तो नहीं है I 
                   बहुत देर तक रामदास के साथ इस विषय पर बातचीत करने के बाद उसके मन में विचार आया कि क्यों ना गुरु साहेब के पास जा कर उन्हीं से इस पहेली को सुलझाने की प्रार्थना की जाए I
                    जब दोनों ने अपनी आपबीती सुनाई तो गुरु साहिब ने अंतर्ध्यान हो कर दोनों के पूर्व जन्मों पर दृष्टि डाली और पहले रामदास से कहा, भाई रामदास पिछले जन्म में तुम ने एक मोहर दान की थी जिसके बदले में तुम्हें मोहरों से भरा हुआ घड़ा मिलना था, लेकिन इस जन्म में तुम बुरे कर्म करने लगे जैसे ही तुम कोई पाप करते थे एक सोने की मोहर का कोयला बन जाता था, आज तुम पाप से बचे रहे इसीलिए एक मोहर तुम्हें मिल गई नहीं तो इसका भी कोयला बन जाना था I
                         फिर गुरु साहिब साहूकार की ओर मुड़े और बोले, पिछले जन्म में तुम एक बेरहम बादशाह थे जिस के हुक्म से हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था I इन   गलत कर्म का बदला तुम्हें जुल्म सहकर और फांसी के तख्ते पर लटक कर देना था लेकिन तुम सत्संग में आने लगे और गुरु की शरण में आ गए इसलिए तुम्हारे कर्मों का बोझ हल्का होता चला गया I अनगिनत लोगों की हत्या का तुम्हें क्या फल भोगना पड़ा तुम एक दर्दनाक मौत से बच गए और तुम्हारी सूली का   शूल हो गया I
                             गुरु साहिब के वचन सुनकर दोनों उनके चरणों में गिर पड़े और अपने गुनाहों की माफी मांगने लगे जैसे जैसे समय बीतता गया दोनों का मन निर्मल होता गया और उनकी जिंदगी ही बदल गई दोनों साधु संगत की सेवा और गुरु भक्ति में अपना समय बिताने लगे I


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